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देहरादून :
देहरादून: उत्तराखंड समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के ड्राफ्ट को लेकर दून विश्वविद्यालय की वीसी प्रो. सुरेखा डंगवाल ने स्पष्ट किया है कि यूसीसी के तहत होने वाले पंजीकरण से उत्तराखंड के मूल निवास या स्थायी निवास प्रमाणपत्र से कोई सरोकार नहीं है। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में न्यूनतम एक साल से रहने वाले सभी लोगों को इस संहिता के दायरे में शामिल किया गया है ताकि राज्य की डेमोग्राफी संरक्षित रह सके।
प्रो. सुरेखा डंगवाल ने यूसीसी प्रावधानों पर कहा, “यूसीसी का सरोकार शादी, तलाक, लिव इन, वसीयत जैसी सेवाओं से है। इसे स्थायी निवास या मूल निवास से जोड़ना किसी भी रूप में संभव नहीं है।” उन्होंने आगे बताया कि यूसीसी पंजीकरण से कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलने हैं और उत्तराखंड में स्थायी निवास पूर्व की शर्तों के अनुसार ही तय होगा।
उन्होंने यह भी कहा कि यूसीसी के तहत पंजीकरण ऐसा है जैसे कोई व्यक्ति कहीं भी सामान्य निवास होने पर अपना वोटर कार्ड बना सकता है। इसका उद्देश्य उत्तराखंड का समाज और यहां की संस्कृति संरक्षित रखना है जिससे राज्य की डेमोग्राफी को सुरक्षित किया जा सके। इससे अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों पर भी अंकुश लगेगा।
उत्तराखंड में दूसरे राज्यों के लोगों के रहने के संदर्भ में प्रो. डंगवाल ने कहा, “उत्तराखंड में बड़ी संख्या में दूसरे राज्यों के लोग भी रहते हैं जो सरकारी योजनाओं का लाभ ले रहे हैं। ये लोग अब पंजीकरण कराने पर ही सरकारी योजनाओं का लाभ उठा पाएंगे।” यदि यूसीसी सिर्फ स्थायी निवासियों पर लागू होता तो, अन्य राज्यों से आने वाले बहुत सारे लोग इसके दायरे से बाहर रह जाते, जबकि वे यहां की सभी सरकारी योजनाओं का लाभ उठाते रहते। यूसीसी के तहत पंजीकरण का मकसद उत्तराखंड में रहने वाले सभी लोगों को यह सुविधा देना है और सरकार के डेटा बेस को समृद्ध बनाना है।
लिव इन पंजीकरण के बारे में प्रो. डंगवाल ने स्पष्ट किया कि यूसीसी के तहत लिव इन पंजीकरण के लिए दिए गए दस्तावेजों की जांच सिर्फ रजिस्ट्रार के स्तर पर की जाएगी। लिव इन आवेदन प्राप्त होने पर रजिस्ट्रार द्वारा जिला पुलिस अधीक्षक के माध्यम से स्थानीय पुलिस थाने के प्रभारी अधिकारी को लिव इन संबंध का कथन इलेक्ट्रॉनिक रूप से उपलब्ध कराया जाएगा। यह सूचना सिर्फ जिला पुलिस अधीक्षक की निगरानी में ही पहुंच सकेगी, जिससे उच्च स्तर की गोपनीयता बनी रहे।
उन्होंने कहा कि लिव इन से पैदा हुए बच्चों को भी जैविक संतान की तरह पूरे अधिकार दिए गए हैं, जिससे विवाह की संस्था मजबूत होगी और समाज की समृद्धि का आधार बनेगी।