पिथौरागढ़।
पिथौरागढ़, जिसे मिनी कश्मीर के नाम से प्रसिद्ध सोर घाटी के रूप में पहचाना जाता है, राज्य गठन के बाद आबादी और बाहरी पर्यटकों का दबाव लगातार बढ़ा है। हिमनगरी मुनस्यारी, आदि कैलास, ओम पर्वत और प्रसिद्ध कैलास मानसरोवर यात्रा का रास्ता भी इसी शहर से गुजरता है। सामरिक दृष्टि से नेपाल और चीन सीमा से सटे इस क्षेत्र की सड़क और यातायात व्यवस्था बेहद महत्वपूर्ण है। वर्ष 2006 में मुख्य शहर को ‘जाम मुक्त’ करने और बाहरी पर्यटन यातायात का दबाव कम करने के उद्देश्य से 20 किमी लंबी रिंग रोड परियोजना का सपना देखा गया था।

रिंग रोड परियोजना के लिए धनराशि स्वीकृत हुई, भूमि अधिग्रहण व मुआवजा भी बंटा, लेकिन जनप्रतिनिधियों की कमजोर इच्छाशक्ति और भूमि विवादों के चलते पूरा प्रोजेक्ट अधर में लटक गया। ऐंचोली, टकाड़ी, बड़ौली, पौण, पपदेव, चंडाक, मोस्टामानू होते हुए सड़क की योजना बनाई गई थी, जिसे टनकपुर-पिथौरागढ़ लिपुलेख हाईवे से जोड़ना था। इस रिंग रोड के बन जाने से शहर की परिक्रमा सुगम होती, मुनस्यारी, धारचूला, चंपावत से आने-जाने वाले वाहनों का आवागमन और आसान हो जाता तथा शहर के विकास को नई गति मिलती।
अफसोस की बात यह है कि 2006 के बाद कुछ क्षेत्रों में अधिग्रहित भूमि पर सड़क तो बनी, लेकिन ऐंचोली से टकाड़ी और चंडाक में भूमि उपलब्ध न होने से निर्माण कार्य रुक गया। भूमि विवादों के बेसब्री से बढ़ते जाने के कारण यह महत्वाकांक्षी परियोजना अब कागजों में सिमट गई है। आज भी पिथौरागढ़ का नगर विकास, पर्यटन और तीर्थाटन की प्रगति के लिए इस रोड का अधूरापन एक बड़ी बाधा बनकर खड़ा है। ऐसी सड़कों की आवश्यकता सिर्फ यातायात के लिए ही नहीं, बल्कि क्षेत्र की आर्थिक, सामरिक और पर्यावरणीय स्थिति के लिए भी बेहद ज़रूरी है।
2025 – पिथौरागढ़ रिंग रोड परियोजना – स्थिति और प्रभाव
| योजना/विवरण | लंबाई/बजट | मुख्य मार्ग/पॉइंट्स | स्थिति/बाधा | असर |
|---|---|---|---|---|
| रिंग रोड | 20 किमी, ₹4 करोड़ | ऐंचोली-टकाड़ी-चंडाक-घुनसेरा-उर्ग | भूमि विवाद, निर्माण ठप | शहर जाममुक्त, पर्यटन, कनेक्टिविटी |
| टनकपुर-पिथौरागढ़ हाईवे कनेक्ट | संपर्क मार्ग | किरीगांव, निराड़ा, बड्डा | एक छोर से दूसरे तक सुविधा | अधूरा विकास |
पिथौरागढ़ की रिंग रोड योजना यदि पूरी होती तो न केवल शहर को जाम की समस्या से मुक्ति मिलती, बल्कि पूरे क्षेत्र का पर्यटन, तीर्थाटन, और सामरिक महत्त्व बढ़ता। लेकिन भूमि विवादों और निर्णय में कमी ने इस सपने को अभी तक अधूरा ही रखा है। अब देखा जाना यह है कि क्या सरकार एवं जनप्रतिनिधि परियोजना को फिर से शुरू कर पाएंगे, ताकि मिनी कश्मीर के नाम से पहचाने जाने वाला पिथौरागढ़ पूरी तरह विकसित हो सके।



