नई टिहरी।
नई टिहरी में देश के सबसे बड़े त्योहार दीपावली की तैयारी जोरों पर है। शहर के बाजार खासकर नई टिहरी और बौराड़ी मार्केट पूरी तरह से सजावट और रोशनी से जगमगा उठे हैं। दुकानदारों के सामान की बिक्री में भी तेजी देखने को मिली है, जिसमें खासतौर पर स्थानीय स्वरोजगार को बढ़ावा देते हुए पारंपरिक भैलो वस्तुओं की मांग बढ़ी है। नई टिहरी के हनुमान चौक पर पीएम स्वनिधि योजना के लाभार्थी राधाकृष्ण मैठाणी स्वयं बनाए हुए भैलों का उत्पादन कर रहे हैं।

उनका उद्देश्य अधिक से अधिक भैलो बनाकर लोगों में पारंपरिक दीपावली उत्सव को जीवित रखना है। उन्होंने बताया कि भैलो बनाना उन्होंने अपने बचपन में गांव के बुजुर्गों से सीखा था, और पहाड़ों में दीपावली पर भैलो खेलने की परंपरा विशेष रूप से लोकप्रिय है।
नई टिहरी के हनुमान चौक पर भैलो बनाते हुए मैठाणी ने कहा कि नौकरी या रोजगार के लिए शहर या बाहर गए कई लोग दीपावली के उत्सव में गांव लौटते हैं। भैलो उत्तराखंड की समृद्ध लोकसंस्कृति का प्रतीक है, जो ग्रामीण क्षेत्रों में सामूहिक रूप से मैदानों या खेतों में खेला जाता है। दीपावली के दौरान नई टिहरी के बौराड़ी ओपन मार्केट में भारी भीड़ उमड़ती है और लोक संगीत, तांदी, वाद्य यंत्रों की थाप पर सामूहिक नृत्य कार्यक्रम भी होते हैं।
मैठाणी ने बताया कि पिछले तीन दिनों में उन्होंने लगभग 80 से अधिक भैलो बनाए और बेच भी दिए हैं, जिससे उनका व्यापार सफल रहा है। ज्यादातर ग्राहक शहरों में रहने वाले लोग हैं, जो अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा भैलो को खरीदना पसंद करते हैं। इसके अलावा चंबा ऋषिकेश मोटर मार्ग के साबली, कुकरबागी सौड़, नागणी, खाड़ी और आगराखाल क्षेत्रों में भी भैलो की अच्छी बिक्री हुई है। भैलो चीड़ की लकड़ी के एक टुकड़े को लंबाई में छीलकर जिसे घास की बेलनुमा रस्सी के एक सिरे से बांधा जाता है, बनाया जाता है।
दीपावली के दिन सबसे पहले भैलो की पूजा-अर्चना की जाती है, इसके बाद उसका तिलक होता है। तत्पश्चात सभी ग्रामीण वाद्य यंत्रों के साथ गांव की गलियों में भैलो खेलते हुए निकलते हैं। हाल के वर्षों में शहरी क्षेत्रों में भी भैलो खेलने की परंपरा बढ़ी है, जिससे यह लोक संस्कृति संरक्षण की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है। नई टिहरी व्यापार मंडल के अध्यक्ष भगवान सिंह रावत ने सभी से अपील की है कि वे स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा दें और खरीदारी स्थानीय बाजार से करें ताकि क्षेत्र की अर्थव्यवस्था सशक्त हो सके।
इस प्रकार, भैलो न केवल दीपावली का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रतीक है बल्कि स्वरोजगार को भी प्रोत्साहित करता है, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है और क्षेत्रीय संस्कृति को जीवित रखा जाता है। नई टिहरी और इसके आसपास के बाजारों में दिवाली की रौनक और नई ऊर्जा का संचार इस परंपरा के चलते हर साल देखने को मिलता है।



