श्रीनगर गढ़वाल के मंजूघोष कांडा मेले के दूसरे दिन मंदिर परिसर आध्यात्मिक और आलौकिक दृश्यों से सराबोर रहा। ढोल की थाप और मंत्रोच्चारण के साथ दूर-दराज से श्रद्धालु मनोकामना पूर्ण होने पर निशान लेकर जत्थों की शक्ल में मंदिर पहुंचे। दिनभर मंदिर में पारंपरिक ढोल-दमाऊं पर देव नृत्य तथा झोड़ा-छपेली का आयोजन होता रहा, जिसमें कई श्रद्धालुओं पर देव पश्वाओं का अवतरण भी देखने को मिला। श्रद्धालुओं ने देव पश्वाओं से आशीर्वाद ग्रहण किया और मंदिर परिसर जयकारों, भक्ति व उल्लास के वातावरण में डूबा रहा।
दो दिवसीय मेले के अंतिम दिन बड़ा कांडा मनाया गया, जिसमें 19 निशान चढ़ाए गए, जबकि पहले दिन छोटी कांडा की रस्म में 26 निशान भक्तों ने चढ़ाए थे। पूरे मेले में कुल 45 निशान भक्तों द्वारा देवी-देवताओं के प्रति श्रद्धा के साथ चढ़ाए गए। आयोजन समिति के अध्यक्ष द्वारिका प्रसाद भट्ट के अनुसार, बड़ा कांडा में सबसे पहले चंद्रबदनी संकुल और अंत में बेलकंडी गांव के ग्रामीणों ने निशान चढ़ाया। देर सायं पूजा-अर्चना के बाद वेद मंत्रों के साथ मंजूघोषेश्वर मंदिर के कपाट एक माह के लिए बंद कर दिए गए। महीनेभर मां भगवती मंदिर में महादेव के संग एकांतवास में रहेंगी।
धार्मिक परंपरा के अनुसार, छोटा कांडा पर मां भगवती की डोली कांडा गांव से मंजूघोषेश्वर मंदिर का मायका मानी जाती है, जहां हर वर्ष यह विशेष पूजा सम्पन्न होती है। इस अवसर पर हजारों श्रद्धालु मेले में पहुंचे, जिससे पूरे क्षेत्र में धार्मिक उत्साह और उत्सव का माहौल बन गया।
मंदिर क्षेत्र में विद्युत और पेयजल जैसी मूलभूत सुविधाओं की समस्या भी सामने आई। छोटा कांडा के दिन बिजली आपूर्ति बाधित रही, वहीं समिति ने बताया कि विधायक द्वारा मंदिर के सौंदर्यकरण और संसाधन उपलब्धि हेतु पांच लाख रुपये की घोषणा पूर्व में की गई थी, लेकिन अभी तक कोई ठोस कार्य नहीं हुआ है। बावजूद इसके, भक्तों की आस्था और स्थानीय परंपराओं ने मेले की रंगत में कोई कमी नहीं आने दी।
2025 – मंजूघोष कांडा मेले के प्रमुख आंकड़े
| दिन | मंदिर में चढ़े निशान | प्रमुख आयोजन | भक्तों की उपस्थिति | कपाट बंदी की अवधि |
|---|---|---|---|---|
| पहली दिन (छोटा कांडा) | 26 | श्री भगवती डोली, पारंपरिक नृत्य | हजारों | एक माह |
| दूसरा दिन (बड़ा कांडा) | 19 | देव नृत्य, मंत्रोच्चारण | हजारों | – |
| कुल | 45 | भक्तिमय वातावरण | हजारों | एक माह |
मंजूघोष कांडा मेले ने इस वर्ष भी क्षेत्र के धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व को उजागर किया। श्रद्धालुओं के उत्साह, पारंपरिक नृत्य, देव पश्वाओं का आशीर्वाद और मंदिर बंदी की रस्म ने अखंड श्रद्धा और परंपरा को फिर जीवंत कर दिया। एक माह तक मां भगवती के एकांतवास का प्रतीक यह मेले स्थानीय आस्था, संस्कृति और परंपरा का अभिन्न अंग बना रहेगा।



