देहरादून।
देहरादून में सोनम वांगचुक की गिरफ्तारी के खिलाफ प्रदर्शन आयोजित किया गया जहां विभिन्न जन संगठनों ने गांधी पार्क में महात्मा गांधी की प्रतिमा के सामने कैंडल मार्च निकालकर केंद्र सरकार की कार्रवाई की आलोचना की और रिहाई की मांग की गई। यह घटना लद्दाख के जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की 26 सितंबर 2025 को राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत हिरासत से जुड़ी हुई है जिसके बाद हिमालय क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन फैल गए हैं।
प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि यह लोकतांत्रिक आवाज को दबाने का प्रयास है जबकि लद्दाख प्रशासन ने दावा किया कि वांगचुक ने एक भाषण में हिंसा भड़काई जिससे लद्दाख में विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए और चार नागरिकों की मौत हो गई।
लद्दाख में छठी अनुसूची की मांग से जुड़े आंदोलन के दौरान हुई हिंसा के बाद वांगचुक को हिरासत में लिया गया जहां पुलिस ने दावा किया कि उनके बयानों से सार्वजनिक व्यवस्था प्रभावित हुई और भीड़ हिंसा में शामिल हुई।
वहीं केंद्र सरकार के गृह मंत्रालय ने उन्हें भीड़ हिंसा को बढ़ावा देने का आरोपी बनाया जिसके बाद दिल्ली सीमा पर 30 सितंबर 2024 को वांगचुक सहित 120 अन्य कार्यकर्ताओं को रोका गया था हालांकि तिथियां 2025 में समायोजित हैं।
देहरादून के प्रदर्शन में वक्ताओं ने हिमालय क्षेत्र की पर्यावरणीय चुनौतियों जैसे क्लाउडबर्स्ट, भूस्खलन, बाढ़ और भूकंप पर चर्चा की जो अवैज्ञानिक विकास योजनाओं से जुड़ी हैं और वनों की कटाई, जलविद्युत परियोजनाओं तथा अनियोजित पर्यटन से जीवन तथा संस्कृति को खतरा पैदा हो रहा है।उत्तराखंड में एलिवेटेड रोड तथा गांधी पार्क में कैंटीन जैसी योजनाओं पर स्थानीय विरोध व्यक्त किया गया जहां बढ़ती बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और युवाओं के आंदोलनों के दमन से जनता का भरोसा प्रभावित हो रहा है।
Sonam Wangchuk girftari virodh के तहत प्रदर्शनकारियों ने तत्काल रिहाई, निराधार आरोपों को हटाने तथा केंद्र व राज्य सरकारों से स्थानीय समुदायों के साथ संवाद की मांग की। नीतियों में बदलाव की अपील की गई जहां कॉरपोरेट हितों के बजाय जनता तथा पर्यावरण को प्राथमिकता दी जाए साथ ही उत्तराखंड में युवाओं तथा छात्रों के आंदोलनों का सम्मान किया जाए और रोजगार सृजन तथा भ्रष्टाचार पर प्रभावी कार्रवाई हो।इस मार्च में प्रमुख वक्ताओं जैसे राजीव नयन बहुगुणा, लुशुन टोडरिया, कमला पंत, एस.एस. पांगती, राहुल कोटियाल, हरि ओम पाली, इंद्रेश मैखुरी, जया सिंह तथा यशवीर आर्य ने विचार रखे
जहां उन्होंने हिमालय की पुकार को अनसुना न करने तथा पर्यावरण क्षति, महिलाओं की भूमिका, लद्दाख की स्थिति, युवाओं को प्रेरित करने, भ्रष्टाचार पर प्रहार, टिकाऊ विकास की जरूरत, लोकतंत्र की रक्षा तथा क्षेत्रीय एकता पर जोर दिया। संगीत के माध्यम से माहौल बनाया गया जहां सतीश धौलाखंडी तथा त्रिलोचन भट्ट ने जनगीत गाए जो हृदयस्पर्शी थे और “हिमालय हमारा, बचाओ इसे!” जैसे गीतों ने सबको जोड़ा। प्रदर्शन में निर्मला बिष्ट, प्रो. राघवेंद्र, एन रमैया, मीनू जैन, नंद नंदन पांडे, तुषार रावत, चंद्रकला तथा अशद खान जैसे लोग मौजूद थे जिनकी उपस्थिति ने dehradun candle march को मजबूत बनाया।
Himalaya paryavaran suraksha से जुड़े इस विवाद ने राष्ट्रीय स्तर पर बहस छेड़ी जहां अल जजीरा ने रिपोर्ट की कि लद्दाख में हिंसा के बाद गिरफ्तारी हुई और इसे शांतिपूर्ण आंदोलन का दमन बताया जबकि हिंदुस्तान टाइम्स ने वायरल वीडियो पर सरकारी फैक्ट-चेक का उल्लेख किया कि लद्दाख पुलिस प्रमुख ने बिना सबूत गिरफ्तारी की बात नहीं कही।
हिमालय में जलवायु परिवर्तन तेज हो रहा है जहां ग्लेशियर पिघल रहे हैं, नदियां सूख रही हैं तथा अवैज्ञानिक खनन और सड़कें तबाही मचा रही हैं। उत्तराखंड में 2013 की केदारनाथ त्रासदी विकास मॉडल की विफलता का उदाहरण है जहां आज भी समान गलतियां दोहराई जा रही हैं। Uttarakhand andolan युवाओं को सड़कों पर ला रहा है जहां बेरोजगारी 20 प्रतिशत से ऊपर है जबकि पर्यटन बढ़ रहा है लेकिन स्थानीय फायदा सीमित रहता है।
सरकार को स्थानीय ज्ञान को शामिल करने तथा टिकाऊ विकास पर फोकस करने की सलाह दी जा रही है जहां वांगचुक के सोलर टेंट तथा टिकाऊ शिक्षा मॉडल का उल्लेख होता है लेकिन आरोपों की जांच जारी है। Sonam wangchuk girftari virodh लोकतंत्र की परीक्षा के रूप में देखा जा रहा है जहां एनएसए का इस्तेमाल शांतिपूर्ण कार्यकर्ताओं पर किया गया और सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग हो रही है। देहरादून का यह मार्च एक शुरुआत है जहां आने वाले दिनों में और प्रदर्शन हो सकते हैं तथा हिमालय की संस्कृति तथा आजीविका को बचाने के लिए जनता एकजुट हो रही है। Himalaya suraksha andolan अब राजनीतिक मुद्दा बन चुका है जहां नागरिक समाज संगठन रिहाई की मांग कर रहे हैं।