रुद्रप्रयाग।
उत्तराखंड के पवित्र धाम केदारनाथ में परंपरा के अनुसार, शीतकाल के आगमन के साथ धार्मिक व्यवस्थाएं प्रारंभ हो गई हैं। शनिवार दोपहर ठीक 1:15 बजे केदारनाथ के रक्षक माने जाने वाले भुकुंट भैरवनाथ मंदिर के कपाट विधि-विधान और पूजा-अर्चना के बीच शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए। यह मंदिर केदारनाथ धाम से लगभग 800 मीटर की पैदल दूरी पर स्थित है।

माना जाता है कि शीतकाल के दौरान जब केदारनाथ मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, तो केदारपुरी (केदार घाटी) की रक्षा भुकुंट भैरवनाथ करते हैं। हर वर्ष केदारनाथ धाम के कपाट बंद होने से पहले भैरवनाथ मंदिर के कपाट भी परंपरागत ढंग से बंद किए जाते हैं। शनिवार को इस पवित्र अनुष्ठान के लिए पहले केदारनाथ मंदिर में पूजा, भोग और जागरण आयोजित किया गया।
इस आयोजन में बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के प्रमुख पदाधिकारी, केदार सभा और पंच पंडा समिति के सदस्य शामिल हुए। भैरवनाथ मंदिर के पुजारी बागेश लिंग, धर्माधिकारी ओंकार शुक्ला, वेदपाठी यशोधर मैठाणी व अन्य तीर्थ पुरोहितों ने गठन के तहत पूजा, रोट और स्थानीय पकवानों से भैरवनाथ पूजन किया। इसके बाद मंत्रोच्चारण और हवन के साथ कपाट को विधिवत बंद कर दिया गया।
अब केदारनाथ मंदिर के मुख्य कपाट 23 अक्टूबर को शीतकाल के लिए बंद किए जाएंगे। यह सिलसिला हिमालयी परंपरा, धार्मिक श्रद्धा और सामूहिक सहभागिता का परिचायक है। इस पवित्र क्रिया में मंदिर समिति के मुख्य कार्याधिकारी विजय प्रसाद थपलियाल, सदस्य विनीत पोस्ती, केदार सभा अध्यक्ष राजकुमार तिवारी सहित अनेक धर्माधिकारी और श्रद्धालु उपस्थित रहे।
इस बार कपाट बंदी के दौरान श्रद्धालुओं, तीर्थपुरोहितों और पंडा समुदाय ने मिलकर न केवल पूजा की परंपरा को निभाया, बल्कि केदारपुरी की धार्मिक विरासत और संरक्षण का संदेश भी दिया।



