देहरादून:
उत्तराखंड एकता मंच के नेतृत्व में 22 दिसंबर को जंतर मंतर पर ‘उत्तराखंड मूलनिवासी संसद’ का आयोजन किया जा रहा है। इस आयोजन में उत्तराखंड के बुद्धिजीवी, समाजसेवी, विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के प्रतिनिधि, पूर्व नौकरशाह, सेना के पूर्व सैनिक, राज्य आंदोलनकारी, महिलाएं और युवा सम्मिलित होंगे। उनका मुख्य उद्देश्य है उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र को पुनः जनजातीय क्षेत्र घोषित कर संविधान की पांचवीं अनुसूची में शामिल करने की मांग करना।
उत्तराखंड एकता मंच के देहरादून संयोजक अश्वनी मैंदोला ने बताया कि यह क्षेत्र पहले जनजातीय क्षेत्र के रूप में अधिसूचित था, जहां मूल निवासियों को नदियों, जंगलों और जमीन पर अधिकार प्राप्त थे। लेकिन 1972 में इन अधिकारों को समाप्त कर दिया गया, जिसका बहुत ही नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। आजीविका के साधनों की कमी और अन्य कारकों के कारण पहाड़ों से पलायन तेजी से बढ़ रहा है, जिससे हजारों गांव खाली हो गए हैं।
अश्वनी मैंदोला ने आगे कहा कि पहाड़ी क्षेत्रों की कम होती जनसंख्या के कारण विधानसभा सीटों की संख्या भी घट रही है, जिससे अगले परिसीमन में यहां का प्रतिनिधित्व और कम होने का खतरा है। यह स्थिति न केवल विकास को प्रभावित कर रही है बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी चिंता का विषय है।
उत्तराखंड एकता मंच के राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य और पूर्व सैनिक महावीर राणा ने बताया कि उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र ऐतिहासिक रूप से जनजातीय बहुल रहा है। इस क्षेत्र को जनजातीय दर्जा देने के लिए जो मापदंड तय किए गए हैं, वे यहां पूरे होते हैं।
संगठन का मानना है कि जनजातीय दर्जा मिलने और संविधान की पांचवीं अनुसूची में शामिल होने से पलायन रुकेगा और पहाड़ी क्षेत्रों में पहले जैसी खुशहाली लौट आएगी। ‘उत्तराखंड मूलनिवासी संसद’ में इन मुद्दों पर प्रस्ताव पारित कर सरकार को ज्ञापन सौंपा जाएगा।
इस मांग को उत्तराखंड के कई प्रतिष्ठित बुद्धिजीवियों ने समर्थन दिया है, जिनमें प्रोफेसर डॉ. अजय सिंह रावत, पद्मश्री यशवंत सिंह कठोच, पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल गंभीर सिंह नेगी, डॉ. जीतराम भट्ट (पूर्व सचिव, हिंदी एवं संस्कृत अकादमी) और जौनसार के प्रसिद्ध इतिहासकार टीका राम शाह शामिल हैं।