उत्तराखंड

ऋषिकेश: स्कूल में छात्रा से ‘तिलक’ हटाने की मांग पर विवाद, स्कूल प्रशासन को मांगनी पड़ी माफी

ऋषिकेश।
यहां के एक निजी धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा संचालित स्कूल में कक्षा आठवीं की एक छात्रा से उसके माथे पर लगे ‘तिलक’ को हटाने की मांग ने शहर में नए विवाद को जन्म दिया है। बुधवार को हुई इस घटना के बाद छात्रा के माता-पिता और स्थानीय संगठनों ने कड़ा विरोध जताया, जिसके बाद स्कूल प्रशासन को माफी मांगनी पड़ी।
घटना के अनुसार, एक शिक्षक ने छात्रा को नियमों का हवाला देते हुए ‘तिलक’ हटाने को कहा। छात्रा ने शिक्षक के निर्देश का पालन तो किया, लेकिन इससे वह मानसिक रूप से आहत हुई। घर पहुंचकर उसने अपने माता-पिता को इस वाकये की जानकारी दी। अगले दिन, छात्रा के माता-पिता के साथ स्थानीय लोग और संगठन के सदस्य स्कूल पहुंचे और उन्होंने स्कूल प्रशासन से स्पष्टीकरण मांगा तथा मजबूत विरोध दर्ज किया।
विरोध का नेतृत्व कर रहे संगठन के प्रदेश अध्यक्ष राजीव भटनागर ने कहा, “तिलक लगाना हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। इसे हटाने की मांग न केवल अनुचित है, बल्कि यह धार्मिक भावनाओं को भी आहत करती है। हमारे विरोध के बाद स्कूल प्रशासन ने अपनी गलती मानी और आश्वासन दिया कि ऐसा दोबारा नहीं होगा।”
स्कूल के प्रिंसिपल ने स्पष्ट किया कि ‘तिलक’ लगाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है और शिक्षक का यह कदम व्यक्तिगत था, जिससे स्कूल के नियमों का कोई लेना-देना नहीं है। प्रिंसिपल ने माफी मांगते हुए कहा कि भविष्य में ऐसी घटनाएं नहीं होंगी और सभी शिक्षकों को इस संबंध में निर्देशित किया जाएगा।
इस घटना के बाद उत्तराखंड की राज्य शिक्षा विभाग की महानिदेशक झरना कमठान ने टिहरी जिले के मुख्य शिक्षा अधिकारी को जांच के आदेश दिए हैं और स्कूल से स्पष्टीकरण मांगा है। उन्होंने कहा कि छात्रों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना जरूरी है और किसी भी प्रकार के भेदभाव को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
स्थानीय स्तर पर इस घटना के बाद व्यापक प्रतिक्रिया देखने को मिली है। स्थानीय संगठनों और अभिभावकों ने कहा कि स्कूलों को धार्मिक और सांस्कृतिक विविधता का सम्मान करना चाहिए। उनका मानना है कि तिलक जैसे प्रतीकों के संबंध में स्कूल प्रशासन को अधिक संवेदनशील होना चाहिए।
विद्यालय प्रशासन ने इस मामले को शांत करने के लिए माफी मांगी है और भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने की प्रतिबद्धता जताई है। यह घटना एक बार फिर सवाल उठाती है कि धार्मिक और सांस्कृतिक प्रतीकों के प्रति सहिष्णुता कितनी जरूरी है। राज्य शिक्षा विभाग के हस्तक्षेप से यह उम्मीद की जा रही है कि स्कूल प्रशासन और शिक्षक अब छात्रों के धार्मिक विश्वासों का अधिक सम्मान करेंगे।

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