नैनीताल। यूजीसी-मालवीय मिशन टीचर ट्रेनिंग सेंटर, कुमाऊँ विश्वविद्यालय में उत्तराखंड पॉलिटिकल साइंस एसोसिएशन (उपसा) और भारतीय राजनीति विज्ञान परिषद (इपसा) के संयुक्त तत्वावधान में ‘‘भारतीय परंपरागत चिंतन एवं ज्ञानः राजनीतिक पारिस्थितिकी से संभावनाएं’’ विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का समापन हुआ।

समापन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. नीता बोरा शर्मा, निदेशक, डीएसबी कैंपस, कुमाऊँ विश्वविद्यालय ने कहा कि पारंपरिक पारिस्थितिक ज्ञान स्वदेशी और स्थानीय समुदायों के पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने का एक प्रतीक है। यह ज्ञान पीढ़ियों से मौखिक या अनुभवात्मक रूप से प्रसारित होता है और सांस्कृतिक परंपराओं, आध्यात्मिक मान्यताओं और सामाजिक प्रणालियों में गहराई से निहित है।

विशिष्ट अतिथि प्रो. ललित तिवारी, निदेशक, विजिटिंग प्रोफेसर निदेशालय, नैनीताल, ने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा में आयुर्वेद का महत्व है और इस पर गहन शोध की आवश्यकता है। उन्होंने पारंपरिक ज्ञान को आधुनिक वैज्ञानिक नवाचारों से जोड़ने का आह्वान किया।
अध्यक्षता कर रहे प्रो. एमएम सेमवाल, हे.न.ब. केंद्रीय विश्वविद्यालय, गढ़वाल ने जोर दिया कि उत्तराखंड राजनीति विज्ञान परिषद समय-समय पर समाज विज्ञान के नए मुद्दों को मंच प्रदान करता रहा है और भविष्य में भी शोधार्थियों और विद्वानों द्वारा गहन शोध कार्य किया जाएगा।
प्रो. दिव्या जोशी, निदेशक, यूजीसी-एमएमटीटीसी ने राजनीति विज्ञान और उससे जुड़े विषयों के अंतरसंबंधों के माध्यम से शोध कार्य की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, जिससे नए ज्ञान का विकास हो और भारतीय प्राचीन ज्ञान की प्रासंगिकता नीति निर्माण और समाज के हित में काम आ सके।
आयोजक सचिव डॉ. रीतेश साह ने बताया कि इस सेमिनार में सात तकनीकी सत्र आयोजित किए गए जहां 93 शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। एक प्लेनरी सत्र भी हुआ और विभिन्न अवार्ड जैसे बेस्ट रिसर्चर, अर्लियर कैरियर, यंग रिसर्चर और बेस्ट क्वेश्चन अवार्ड प्रदान किए गए।
समापन सत्र में कई विश्वविद्यालयों के प्राध्यापक और शोधार्थी शामिल हुए, जिनमें प्रो. सुमन कुमार, डॉ. दिनेश गहलोत, डॉ. पुष्पेश पंत, डॉ. राखी पंचोला, डॉ. राजेश पालीवाल, डॉ. प्रकाश लखेड़ा, डॉ. मनस्वी, डॉ. मोहित रौतेला, डॉ. अरविंद सिंह रावत, विदुषी डोभाल, डॉ. हरदेश कुमार शर्मा आदि शामिल थे। कार्यक्रम का संचालन और आयोजन सचिव डॉ. रीतेश साह ने किया।