देहरादून।
उत्तराखंड के जौनसार क्षेत्र को लेकर आरटीआई एक्टिविस्ट और एडवोकेट विकेश नेगी ने एक बड़ा दावा किया है। उनके अनुसार, जौनसार को अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा प्राप्त नहीं है, और वहां के ब्राह्मण, राजपूत और खस्याओं को जारी किए गए एसटी प्रमाणपत्र अवैध हैं। इस खुलासे ने न केवल सामाजिक, बल्कि राजनीतिक हलकों में भी हलचल मचा दी है।
सच्चाई का खुलासा
एडवोकेट विकेश नेगी ने दस्तावेजों के हवाले से सनसनीखेज दावा किया है कि जौनसार को अनुसूचित जनजाति क्षेत्र का दर्जा कभी नहीं मिला। उन्होंने 1965 की लोकुर समिति और 1967 के राष्ट्रपति आदेश का हवाला देते हुए कहा कि उत्तराखंड में केवल पांच जनजातियां—भोटिया, बुक्सा, जौनसारी, राजी और थारू—ही एसटी श्रेणी में आती हैं। नेगी ने आरोप लगाया कि जौनसार के नेताओं ने “जौनसर” को “जौनसारी” बताकर जनता को भ्रमित किया और अवैध प्रमाणपत्रों के जरिए आरक्षण का लाभ उठाया।
विकेश नेगी, आरटीआई एक्टिविस्ट: “यह एक सुनियोजित ठगी है। जौनसार के लोग आरक्षण के हकदार नहीं, और यह सामान्य वर्ग के युवाओं के साथ अन्याय है।”
ऐतिहासिक तथ्यों की पड़ताल
लोकुर समिति (1965) ने उत्तर प्रदेश (तब उत्तराखंड सहित) में अनुसूचित जनजातियों की स्थिति को स्पष्ट किया था। समिति ने भौगोलिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आधारों पर केवल पांच जनजातियों को मान्यता दी। 24 जून 1967 के राष्ट्रपति आदेश में भी यही पांच जनजातियां अधिसूचित हैं। नेगी का तर्क है कि जौनसार के ब्राह्मण और राजपूत इनमें शामिल नहीं हैं, फिर भी उन्हें अवैध रूप से एसटी प्रमाणपत्र दिए जा रहे हैं। यह प्रक्रिया न केवल गैरकानूनी है, बल्कि सामान्य वर्ग के युवाओं के अवसरों को भी छीन रही है।प्रमुख तथ्य और आंकड़े
विवरण | तथ्य |
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लोकुर समिति गठन | 25 अगस्त 1965 |
राष्ट्रपति आदेश | 24 जून 1967 |
उत्तराखंड की एसटी जनजातियां | भोटिया, बुक्सा, जौनसारी, राजी, थारू |
लोकसभा प्रश्न तिथि | 12 दिसंबर 2022 (प्रश्न संख्या 786) |
कानूनी खामी या राजनीतिक साजिश?
नेगी का दावा है कि “जौनसर” और “जौनसारी” के बीच टाइपिंग मिस्टेक का फायदा उठाकर जौनसार के ब्राह्मण और राजपूत आरक्षण का लाभ ले रहे हैं। संविधान के अनुच्छेद 244 और शेड्यूल 5-6 में उत्तराखंड को कहीं भी एसटी क्षेत्र घोषित नहीं किया गया। नेगी ने आरोप लगाया कि बिना संसदीय विधेयक के नई जातियों को एसटी सूची में शामिल करना असंवैधानिक है। यह सवाल उठता है कि क्या यह कानूनी खामी है या जानबूझकर की गई साजिश?
सामान्य वर्ग का दर्द
जौनसार में अवैध एसटी प्रमाणपत्रों का मुद्दा उत्तराखंड के सामान्य वर्ग के युवाओं के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है। नेगी का कहना है कि इन प्रमाणपत्रों के कारण योग्य अभ्यर्थियों को सरकारी नौकरियों में नुकसान हो रहा है। यह मामला सामाजिक न्याय और समानता के सिद्धांतों पर सवाल उठाता है।
विकेश नेगी: “सामान्य वर्ग के युवा बेरोजगारी का दंश झेल रहे हैं, क्योंकि जौनसार के नेता गलत तरीके से आरक्षण का लाभ उठा रहे हैं।”
राजनीतिक ठगी का आरोप
नेगी ने जौनसार के नेताओं पर जनता को भ्रमित करने का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि नेताओं ने इस भ्रम का इस्तेमाल राजनीतिक सत्ता हासिल करने के लिए किया। यह मामला न केवल जौनसार की जनता के साथ विश्वासघात है, बल्कि पूरे उत्तराखंड के लिए एक चेतावनी भी है।
प्रमुख बिंदु
- अवैध प्रमाणपत्र: जौनसार के ब्राह्मण और राजपूतों को गलत तरीके से एसटी प्रमाणपत्र।
- राजनीतिक लाभ: नेताओं पर जनता को भ्रमित कर सत्ता हासिल करने का आरोप।
- कानूनी लड़ाई: नेगी हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक जाने को तैयार।
सरकारी लापरवाही या जानबूझकर चूक?
1982 में भारत सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में स्पष्ट है कि केवल सक्षम प्राधिकारी ही एसटी प्रमाणपत्र जारी कर सकते हैं। नेगी का सवाल है कि जब जौनसार को एसटी क्षेत्र घोषित ही नहीं किया गया, तो वहां के ब्राह्मणों और राजपूतों को प्रमाणपत्र कैसे जारी हो रहे हैं? क्या यह सरकारी लापरवाही है या सुनियोजित साजिश?
दस्तावेजों की ताकत
नेगी ने लोकुर समिति (1965), राष्ट्रपति आदेश (1967), और लोकसभा प्रश्न (2003, 2022) के दस्तावेजों के आधार पर अपना दावा पेश किया। केंद्र सरकार ने भी 12 दिसंबर 2022 को लोकसभा में स्पष्ट किया कि उत्तराखंड में कोई नया एसटी क्षेत्र घोषित नहीं हुआ। यह तथ्य नेगी के दावे को और मजबूती देता है।
सामाजिक न्याय की लड़ाई
यह मुद्दा केवल जौनसार तक सीमित नहीं है। नेगी का कहना है कि अवैध प्रमाणपत्रों के कारण पूरे उत्तराखंड के सामान्य वर्ग के युवाओं के अवसर छीने जा रहे हैं। यह सामाजिक न्याय की लड़ाई है, जिसमें हर नागरिक की हिस्सेदारी जरूरी है।
कानूनी लड़ाई की शुरुआत
नेगी ने घोषणा की है कि वह इस मामले को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक ले जाएंगे। उन्होंने केंद्र सरकार और संबंधित विभागों से जांच की मांग की है। यह लड़ाई उत्तराखंड में आरक्षण व्यवस्था को पारदर्शी बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम हो सकती है।
जनता का विश्वास टूटा
जौनसार की जनता को भ्रमित कर नेताओं ने न केवल विश्वास तोड़ा, बल्कि प्रदेश के युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया। नेगी की यह लड़ाई उन सभी युवाओं की आवाज है, जो आरक्षण के नाम पर ठगे जा रहे हैं। यह उत्तराखंड के लिए आत्ममंथन का समय है।
विकेश नेगी का यह खुलासा उत्तराखंड में आरक्षण व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाता है। यह मामला न केवल जौनसार, बल्कि पूरे उत्तराखंड के लिए एक जागरूकता का संदेश है।