देहरादून।
श्री गुरु राम राय जी महाराज का 339वां महानिर्वाण पर्व (339th Nirvana Parv) रविवार को देहरादून में पूरे श्रद्धा, भक्तिभाव और परंपरागत रीति-रिवाजों के साथ मनाया गया। इस पावन अवसर पर देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु श्री दरबार साहिब पहुंचे। उन्होंने गुरु महाराज की समाधि पर शीश नवाकर आशीर्वाद प्राप्त किया।
गुरु महिमा और आशीर्वाद
कार्यक्रम के दौरान, सज्जादानशीन श्रीमहंत देवेन्द्र दास जी महाराज ने विशेष पूजा-अर्चना की। उन्होंने उपस्थित संगतों को गुरु महिमा (Guru Mahima) के महत्व को समझाते हुए कहा कि “गुरु ही साक्षात परब्रह्म हैं, गुरु कृपा से ही जीवन सार्थक होता है।”
धार्मिक अनुष्ठान और प्रसाद वितरण
रविवार की सुबह पवित्र सरोवर (taal) के किनारे गुरु महाराज को तर्पण अर्पित किया गया। इसके उपरांत, 17 पुरोहितों द्वारा विशेष पूजा का आयोजन किया गया, जिसमें चावल, दूध, शहद, गंगाजल, घी और शक्कर का प्रयोग किया गया। पूजा संपन्न होने के बाद, श्रद्धालुओं को फलों का प्रसाद वितरित किया गया और एक विशाल लंगर का आयोजन भी किया गया। शाम को, संगतों को हलवा-पूरी और चूरमा का प्रसाद भी ग्रहण कराया गया।
स्वास्थ्य सेवाएं और रक्तदान शिविर
श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल (Shri Mahant Indresh Hospital) की ओर से श्रद्धालुओं के लिए निःशुल्क स्वास्थ्य सेवाएं (free health services) भी उपलब्ध कराई गईं।
महानिर्वाण पर्व के उपलक्ष्य में एक स्वैच्छिक रक्तदान शिविर (voluntary blood donation camp) का भी आयोजन किया गया। इस शिविर में संगतों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया और कुल 105 यूनिट रक्तदान किया। यह शिविर महाकाल सेवा समिति द्वारा श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल ब्लड बैंक के सहयोग से आयोजित किया गया था।
श्री महंत देवेन्द्र दास जी महाराज ने दीप प्रज्ज्वलित कर शिविर का शुभारंभ किया। उन्होंने रक्तदाताओं को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया और कहा कि “रक्तदान महादान है और यह मानवता की सबसे बड़ी सेवा है।”
इस अवसर पर प्रख्यात भागवताचार्य श्री सुभाष जोशी, श्री पृथ्वीनाथ सेवादल के संजय गर्ग, नवीन गुप्ता, विवेक मोहन श्रीवास्तव सहित कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे। श्री महंत इन्दिरेश अस्पताल ब्लड बैंक टीम का नेतृत्व अमित चन्द्रा और डॉ. सुप्रीत कौर ने किया।
श्री गुरु राम राय जी महाराज का जीवन परिचय
श्री गुरु राम राय जी महाराज का जन्म 1646 ई. में चैत्र मास की पंचमी को हुआ था। 1676 ई. में वे देहरादून आए और इसे अपनी कर्मभूमि बनाया। उनके डेरे से ही इस नगर का नाम “देहरादून” पड़ा। भाद्रसुदी 8 संवत 1744 (4 सितम्बर 1687) को ध्यान करते हुए वे परमात्मा में लीन हो गए। तभी से हर वर्ष उनकी स्मृति में महानिर्वाण पर्व का आयोजन किया जाता है।