रुड़की निकाय के अनारक्षित रहने की संभावना बढ़ी
रुड़की। भाजपा द्वारा घोषित की गई राज्य के निकाय चुनाव प्रमुख सूची के अनुसार रुड़की नगर निगम का प्रभारी पूर्व दर्जाधारी रवि मोहन अग्रवाल को बनाया गया है। जैसा कि नाम से ही जाहिर है कि अग्रवाल वैश्य समाज से आते हैं और उनका प्रभारी बनना अपने-आप में दो बातों का इशारा है। एक यह कि संभवत: रुड़की मेयर पद सामान्य रहने वाला है।
इस इशारे से लगता है कि यहां अगर आरक्षण लागू हुआ भी तो अधिकतम सामान्य वर्ग की महिला के लिए ही होगा। दूसरा यह कि पार्टी का प्रत्याशी इस बार भी वैश्य समुदाय से ही आने की संभावना है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि टिकट वरिष्ठतम भाजपाई मयंक गुप्ता के नाम जाएगा या अपेक्षाकृत युवा माने जाने वाले दावेदार चेरब जैन के नाम। वैसे टिकट की लाइन में पार्टी में कई और खामोश वैश्य दावेदार भी शामिल हैं। इस मामले में सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि पार्टी के बड़े नेताओं के आपसी समीकरण किस करवट बैठने वाले हैं। मसलन, अगर पार्टी की राजनीति देहरादून-रुड़की वाया हरिद्वार हुई तो टिकट के मामले में गुणात्मक परिवर्तन देखने को भी मिल सकता है। ऐसी स्थिति में पार्टी बिल्कुल अप्रत्याशित वैश्य चेहरा भी सामने ला सकती है।
दूसरी बात, यह एक स्वाभाविक बात है कि भाजपा अपना टिकट इस बात को मद्देनजर रखकर भी तय करेगी कि इस बार वह इस निकाय को जीत सके और इस बात को मद्देनजर रखकर भी कि कांग्रेस का टिकट किस समुदाय के नाम जा सकता है। फिलहाल कांग्रेस में दो बेहद मजबूत दावेदार टिकट का संघर्ष कर रहे हैं। एक, पूर्व मेयर यशपाल राणा जो बिरादरी से राजपूत हैं। दूसरे, सचिन गुप्ता जो बिरादरी से वैश्य हैं। अगर भाजपा और कांग्रेस दोनों के टिकट वैश्य समुदाय के खाते में जाते हैं तो चुनाव की स्थिति क्या रहेगी यह देखने वाली बात होगी। खासतौर पर यह कि क्या नगर का मतदाता वैश्यों या वैश्यों-पंजाबियों की मोनोपली को बर्दाश्त करेगी? या फिर इसी से किसी तीसरे के लिए रास्ता निकलेगा, जैसे 2003 में ब्राह्मण दिनेश कौशिक या 2013 में राजपूत यशपाल राणा के लिए निकला था। दोनों निर्दलीय जीतकर आए थे।
फिलहाल की स्थिति में जो निश्चित रूप से कहा जा सकता है वह यह है कि पिछली बार पार्टी ने अपने दो वैश्य दावेदारों मयंक गुप्ता और गौरव गोयल में से मयंक गुप्ता को चुना था। इसका पहला परिणाम यह सामने आया था कि गौरव गोयल बागी उम्मीदवार के रूप में सामने आ गए थे और दूसरा यह कि वे ही जीत गए थे। यूं भाजपा तो हारी थी लेकिन वैश्य-पंजाबी समीकरण जीत गया था। हालांकि तब भी रुड़की निकाय चुनाव के प्रभारी, तत्कालीन प्रदेश महामंत्री, अनिल अग्रवाल थे। लेकिन वे भी न तो वैश्य बिरादरी में और न ही पार्टी में बगावत को रोक पाए थे। साथ ही वे वैश्य बिरादरी को भाजपा के पक्ष में मतदान करने के लिए भी तैयार नहीं कर पाए थे। ऐसे में, अगर पार्टी वैश्य को ही टिकट देती है तो रवि मोहन अग्रवाल किस हद तक हालात को सामान्य रख पाने में कामयाब रहेंगे यह देखने वाली बात होगी। वैसे फिलहाल, फिलहाल, कम से कम ऊपरी स्तर पर ऐसा नहीं लगता कि पार्टी में कोई भीतरी संघर्ष आकार ले रहा है। लेकिन इसके दो कारण हैं। एक यह कि फिलहाल, फिलहाल जिद के तहत राजनीति करने वाले चेहरे, यथा मयंक गुप्ता, विधायक प्रदीप बत्रा और पूर्व मेयर गौरव गोयल आदि, इस उम्मीद में पनाह तलाश कर रहे हैं कि पद पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षित होने जा रहा है। लेकिन अगर पद आरक्षित नहीं होता तो अखाड़ा सजना तय होगा। तब यह भी हो सकता है कि कोई वैश्य चेहरा पार्टी से बगावत करके बाहर आए और चुनाव लड़े और यह भी हो सकता है कि सभी असंतुष्ट भाजपाई कांग्रेस की उम्मीदवारी अपनी इच्छा के अनुसार तय होने की उम्मीद करें। तब स्वाभाविक रूप से रवि मोहन अग्रवाल की भूमिका महत्वपूर्ण होगी।